Monday, December 27, 2010

भावांजलि

तुमने जो प्रेम सुधा सौंपी
रच बस गयी मेरे कण-कण में,
उस प्रीत माधुरी को पीने
तुम आये हो मेरे मन में !

अंतर्मन में है गूंज रहा
एक राग मधुर बन कर गुंजन,
उस स्वरलहरी को सुनने ही
आये हो तुम बनकर धड़कन !

नयनों में छवि इस सृष्टि की
जो प्रेम तत्व से रची गयी
उस दृश्य अनोखे को लखने
तुम आये हो मेरे उर में !

जो छिपा रहा जग आँखों से
जो व्यक्त कभी न हो पाया,
वह गीत मधुर, रसमय तुमको
अर्पित है आज, प्रभु मेरे !

3 comments:

  1. भावपूर्ण मधुर मधुर
    आभार

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  2. अनुपमा जी व राकेश जी, स्वागत व आभार !

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