Thursday, January 27, 2011

ज्ञान का सूरज बने तुम !

ज्ञान का सूरज बने तुम !

निरंतर एक प्रवाह
प्रेमरस में सिक्त ज्योति
जो मिटा दे तम हृदयों से
ज्ञान का सूरज बने तुम !

अनवरत एक धारा
मधुरस में सिक्त वाणी
जो मिटा दे कलुष सारा
नेह के निर्झर बने तुम !

बोलता है मौन
है अमिय में सिक्त स्मित
जो मिटा दे दुःख मनों से
 सुखों के सागर बने तुम !

अनिता निहालानी
२७ जनवरी २०११

8 comments:

  1. "बोलता है मौन" अत्यंत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति....आभार.

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  2. प्रेरक और विचारोत्तेजक रचना।

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  3. बोलता है मौन
    है अमिय में सिक्त स्मित
    जो मिटा दे दुःख मनों से सुखों के सागर बने तुम !
    सुन्दर भावाभिव्यक्ति.....

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  4. आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार 29.01.2011 को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
    आपका नया चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

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  5. सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  6. वाह...

    प्रवाहमयी सुन्दर भावाभिव्यक्ति...

    बहुत ही सुन्दर रचना...

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  7. अत्यंत भावपूर्ण सुन्दर अभिव्यक्ति..बहुत प्रवाहमयी..आभार

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  8. सुन्दर अभिव्यक्ति....

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