Monday, August 11, 2014

शतानंद द्वारा श्रीराम का अभिनन्दन करते हुए विश्वमित्र के पूर्व चरित्र का वर्णन

श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 

एकपञ्चाशः सर्गः

शतानंद के पूछने पर विश्वामित्र का उन्हें श्रीराम के द्वारा अहल्या के उद्धार का समाचार बताना तथा शतानंद द्वारा श्रीराम का अभिनन्दन करते हुए विश्वमित्र के पूर्व चरित्र का वर्णन

विश्वामित्र की बात सुनी जब, हुए रोमांचित शतानंद थे
विस्मित हुए राम दर्शन से, वे गौतम के ज्येष्ठ पुत्र थे

मुनि से पुनः ये प्रश्न कहे तब, मेरी माता थीं तप लीन
पूजन किया राम का माँ ने ?, कहा आपने वृतांत प्राचीन  ?

मुक्त हुईं माता शाप से, मिलीं पिता से होकर हर्षित ?
आए राम यहाँ क्या सुख से, पूज्य पिता से होकर पूजित

शतानंद का प्रश्न सुना जब, वाकपटु मुनि तब बोले
पूरा किया कर्तव्य मेरा, नहीं उठा रखा कुछ मैंने

मिलीं अहल्या मुनि गौतम से, जैसे रेणुका जमदग्नि से
महा तेजस्वी शतानंद ने, सुनकर बात कही ये राम से

स्वागत है आपका नर श्रेष्ठ, अहोभाग्य जो आप पधारे
विश्वामित्र के कर्म अचिन्त्य, परम आश्रय हैं जगत के

तप से ब्रह्मर्षि पद पाया, कांति असीम अद्भुत चरित्र
धन्य अति हैं आप धरा पर, रक्षक हैं मुनि विश्वामित्र

पहले थे राजा ये धार्मिक, धर्मज्ञ व अति विद्वान्
प्रजाहित में तत्पर रहते, दीर्घकाल किया था शासन

प्रजापति के पुत्र हुए कुश, कुश के थे कुशनाभ पुत्र
कुशनाभ के गाधि नामके, गाधि पुत्र हैं विश्वामित्र

महातेजस्वी विश्वामित्र ने, वर्ष हजारों किया था शासन
एक समय लेकर सेना ये, पृथ्वी पर करते थे विचरण

नगरों, राष्ट्रों, नदियों तथा, आश्रमों में विचरण करते
आ पहुंचे सुखमय स्थान पर, आश्रम पर मुनि वशिष्ठ के

फूलों, वृक्षों से था शोभित, नाना पशु विचरण करते थे
देव, गन्धर्व, किन्नर चारण थे, सिद्ध वहाँ निवास करते थे  

ब्राह्मण, देवर्षि, ब्रह्मर्षि, तप से सिद्द हुए महात्मा
ब्रह्मलोक से उस आश्रम में, थे बालखिल्य, वैखानस महात्मा

कोई जल पीकर रहते थे, कोई हवा का सेवन करते
सूखे पत्ते, फल-मूल खा, जप-होम में वे रत रहते 


इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में इक्यानवाँ सर्ग पूरा हुआ.



  




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