Thursday, June 2, 2016

राजा दशरथ का राम के लिए विलाप करना, कैकेयी को अपने पास आने से मना करना

श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्

द्विचत्वारिंशः सर्गः

राजा दशरथ का पृथ्वी पर गिरना, श्रीराम के लिए विलाप करना, कैकेयी को अपने पास आने से मना करना और उसे त्याग देना, कौसल्या और सेवकों की सहायता से उनका कौसल्या के भवन में आना और वहाँ भी श्रीराम के लिए दुःख का ही अनुभव करना 

जब तक पड़ती रही दिखायी, धूल उन्हें राम के रथ की
इक्ष्वाकुवंशी राजा ने, आंख्ने अपनी नहीं हटायीं

रहे देखते प्रिय पुत्र को, मानो उनका तन बढ़ रहा
ऊँचे उठ-उठ कर देखते, जब तक कुछ भी नजर आ रहा

धूल भी जब न पड़ दिखाई, हुआ विलीन दृष्टि से रथ
पृथ्वी पर गिर पड़े दुखी हो, आर्त और होकर पीड़ित  

आयीं उन्हें सहारा देने, कौसल्या तब दायीं ओर
वाम भाग में कैकेयी थीं, देख जिन्हें हुए अधीर

नम्र, विनय, धर्म से सम्पन्न, व्यथित हुईं इन्द्रियां उनकी
कहा, दूर हो, स्पर्श न कर !, तू न ही भार्या न बांधवी

जो तेरा आश्रय लेकर, करते हैं जीवन निर्वाह
उनका स्वामी नहीं हूँ मैं, करता हूँ तेरा परित्याग

धर्म का त्याग किया तूने, धन में होकर ही आसक्त
तेरा पाणिग्रहण किया जो, करता हूँ उससे भी मुक्त

यदि भरत भी हो प्रसन्न, विघ्न रहित राज्य को पाकर
श्राद्ध में जो कुछ पिंड दान दे, नहीं प्राप्त हो मुझको आकर 

सने धूल में लगते राजा, राहुग्रस्त सूर्य की भांति
शोक से कातर हुई कौसल्या, राजमहल लेकर लौटीं

जैसे कोई जान-बूझ कर, ब्राह्मण की हत्या कर डाले
होता रहे संतप्त बाद में, प्रज्वलित अग्नि को छूले

अपने दिए वरदान के कारण, दुखी हो रहे थे राजा
वन में गये राम का चिंतन, लौट-लौट याद आता

स्मरण करके प्रिय पुत्र का, आतुर हो करते थे विलाप
सीमा पर पहुँचा समझ कर, करते थे वे दुःख संलाप

2 comments:

  1. बहुत भावपूर्ण और मर्मस्पर्शी चित्रण...

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  2. स्वागत व आभार कैलाश जी !

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