Tuesday, October 18, 2016

श्रीराम का सुमन्त्र को समझा-बुझाकर अयोध्यापुरी लौट जाने के लिये आज्ञा देना

श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्

द्विपंचाश: सर्ग:

श्रीराम की आज्ञा से गुह का नाव मंगाना, श्रीराम का सुमन्त्र को समझा-बुझाकर अयोध्यापुरी लौट जाने के लिये आज्ञा देना और माता-पिता के लिए संदेश सुनाना, सुमन्त्र के वन में ही चलने के लिए आग्रह करने पर श्रीराम का उन्हें युक्तिपूर्वक समझाकर लौटने के लिए विवश करना, फिर तीनों का नाव पर बैठना, सीताजी की गंगाजी से प्रार्थना, नाव से उतरकर श्रीराम आदि का वत्सदेशमें पहुंचना और सांयकाल में एक वृक्ष के नीचे रहने के लिए जाना

रात्रि हुई व्यतीत भोर में, कहा लक्ष्मण से राम ने
काली कोयल बोल रही है, मोर बोलते हैं वन में

गंगा के अब उतरें पार, तीव्र गति से जो है बहती
समझ गये अभिप्राय उनका, उचित सभी व्यवस्था की

एक नाव लाओ मजबूत, दी आज्ञा सचिव को गुह ने
सुंदर जिसमें डांड लगा हो, खेने योग्य हो आसानी से

गुह का यह आदेश मानकर, पहुंचाई सुंदर नौका
हाथ जोड़कर कहा राम से, और करूं मैं क्या सेवा

महातेजस्वी श्रीराम ने, रखवाया सारा सामान
कवच धार, तलवार बांध, तट की ओर किया प्रस्थान

हाथ जोड़ पूछा सुमन्त्र ने, मेरे हित सेवा बतलाएं
किया स्पर्श दाहिने कर से, कहा लौट अयोध्या जाएँ

रथ से इतनी की यात्रा, अब पैदल ही जाना होगा
हुए सुमन्त्र शोक से व्याकुल, दैव ने कैसा दिन दिखलाया

हैं महान आप इतने फिर, कैसा संकट आया आज
स्वाध्याय, सरलता से भी, नहीं होता कोई फल प्राप्त 

मधुर स्वरों में कहा राम ने, नहीं हितैषी आप समान
महाराज को शोक न हो, ऐसा आप करें प्रयास

वृद्ध अति हैं राजा दशरथ, दुःख से व्याकुल हैं भारी
उनका आप सम्भाल करें, इसीलिए इच्छा यह मेरी

पालन करें उनकी आज्ञा का, जो उन्हें प्रिय हो वही कहें
मेरी ओर से कर प्रणाम, यह संदेश उन्हें पहुँचायें

नहीं शोक वनवास का हमें, शीघ्र पुनः हम लौटेंगे
माताओं को भी तीनों का, समाचार कुशलता का दें

महाराज से करें निवेदन, बुला भरत को करें अभिषेक
माताओं का करे वह आदर, भरत को दीजिये संदेश

प्रिय पिता का करने के हित, राजकाज को यदि सम्भाले
दोनों लोक सुधर जायेंगे, सुन सुमन्त्र स्नेह से यह बोले

कैसे बिना आपके लौटूं, खाली रथ लेकर अयोध्या
दीन दशा को होगी प्राप्त, हाहाकर करेगी सौगुना

‘वन पहुंचा आया’ कहूँगा, महारानी कौसल्या से कैसे
सूने रथ को अश्व ये मेरे, आप बताएं, खींचें कैसे

आज्ञा दें वन में चलने की, विघ्न आपके दूर करूंगा
वन तक लाने का सुख पाया, अब आगे भी साथ रहूँगा

सेवा करते ये घोड़े भी, परमगति को प्राप्त करेंगे
फीके हैं सुख सारे जग के, सेवा के सुख के आगे

अवधि जब समाप्त होगी, इस रथ पर ही वापस जाएँ
संग आपके रहने से ये, वर्ष क्षणों में ही बीतेंगे

स्वामी के पुत्र हैं आप, भक्ति मैं आपकी करता
संग आपके चलना चाहूँ, नहीं करें परित्याग भृत्य का



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